आधुनिकता को अपनाने में कहीं विलुप्त न हो जाएं हमारे पारम्परिक त्यौहार: अतुल मलिकराम, फाउंडर, PR 24x7 (पीआर 24x7)



विभिन्न सांस्कृतिक परम्पराओं और दुनिया की सबसे अनूठी ऐतिहासिक विरासतों से परिपूर्ण भारत अपनी गोद में सम्पूर्ण विश्व की तुलना में सबसे अधिक त्यौहार समाहित किए हुए है। अनेकों संस्कृतियों तथा धर्मों को मानने वाले भारत में प्रत्येक वार त्यौहार होता है। इस प्रकार भारत त्यौहारों का देश है। प्रत्येक धर्म के अपने अलग पारम्परिक पर्व तथा उत्सव हैं, जो उस धर्म विशेष का पालन करने वाले लोगों के जीवन तथा उनकी पीढ़ियों में अपने धर्म के प्रति सदाचार की भावना जागृत रखने का सार्थक प्रयास करते हैं।  


भारत की प्रमुख पीआर कंपनी पीआर 24x7 के को-फाउंडर अतुल मलिकराम बताते हैं कि जैसे-जैसे भारत आधुनिकता की ओर अग्रसर हो रहा है, वैसे-वैसे अपने देश की संस्कृति तथा पारम्परिक त्यौहारों को भूलता जा रहा है। प्रतिस्पर्धा की होड़ में इंसान धार्मिक पर्वों के महत्व से पिछड़ता जा रहा है। यदि हम बतौर उदाहरण जनवरी माह में मनाई जाने वाली मकर संक्रांति की ही बात करें, तो कई लोगों के जीवन में व्यस्तता के चलते इस त्यौहार को मनाने का समय ही नहीं है। इस प्रकार साल में एक बार आने वाला यह त्यौहार अब गुमसुम सा गुजर जाता है। अब बादल भी इस दिन पतंगों के रंगों से रंगीन होने को तरसते हैं। दुःख तो तब होता है जब कई लोग इसके महत्व तक को नहीं जानते। यदि आने वाले कुछ वर्षों तक ऐसा ही चलता रहा, तो सदियों से हमारी संस्कृति की शान बढ़ाने वाले ये त्यौहार एक दिन विलुप्त हो जाएंगे। हमें चाहिए कि हम इस दिन की महत्ता को समझें और नई पीढ़ी को भी हमारे सांस्कृतिक पर्वों के महत्व से अवगत कराएं। इसके साथ ही नववर्ष में इसे प्रण के रूप में लें। 


सूर्य का मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रांति के रुप में जाना जाता है। उत्तर भारत में यह पर्व 'मकर संक्रांति' के नाम से, गुजरात में 'उत्तरायण' के नाम से, पंजाब में 'लोहड़ी पर्व', उतराखंड में 'उतरायणी', गुजरात में 'उत्तरायण', केरल में 'पोंगल' और गढ़वाल में 'खिचड़ी संक्रांति' के नाम से मनाया जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्व है। विभिन्न नामों से पहचाना जाने वाला यह पर्व पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान तथा सूर्योपासना पश्चात् गुड़, चावल और तिल का दान श्रेष्ठ माना गया है। मकर संक्रांति के समान सम्पूर्ण पारम्परिक पर्वों की महत्ता को समझें, अपने लिए न सही अपितु पर्वों के बहाने ही पर्वों के लिए समय निकालें और अपनों के साथ इन पर्वों को यादगार बनाएं।

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