आवश्यकता है पुरानी कहावत, "छड़ी पड़े छम-छम, विद्या आए घम-घम" को पुनः जीवित करने की- अतुल मलिकराम



देश-दुनिया को झकझोर कर रख देने वाली महामारी ने पिछले दो वर्षों में कई क्षेत्रों को प्रभावित किया है। इन सबसे परे एक बहुत बड़ा वर्ग है, जो सभी का ध्यान आकर्षित करता है, वह है प्राथमिक कक्षाओं के छात्र। हम मानें या न मानें, लेकिन महामारी के कारण यह वर्ग कई वर्ष पिछड़ चुका है। यदि हम गौर करें, तो पाएंगे कि महामारी के दौरान कई ऐसी चिंताजनक गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा का क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। उम्र के उस पड़ाव में ये बच्चे लम्बे समय से घरों में कैद हैं, जिस समय सही मायने में उनमें ज्ञान की नींव रखी जाती है तथा अनुशासन का सृजन किया जाता है। वरन् हम सोचते हैं कि बच्चे घर में हैं और हमारी आंखों के सामने हैं, इसलिए उन्हें हमारी जरूरत नहीं हो सकती है, लेकिन सत्य यह है कि किशोरों की तुलना में, एक छोटे बच्चे को अधिक ध्यान और देखभाल की आवश्यकता होती है। लेकिन अब यह देखभाल केवल प्यार तक सीमित नहीं है, इस देखभाल के लिए थोड़ा कठोर भी होना होगा। 


पुरानी कहावत है, "छड़ी पड़े छम-छम, विद्या आए घम-घम।" यानी शिक्षक की मार आपके जीवन को चमकाने में अहम् भूमिका निभाती है। हालाँकि, नई शिक्षा नीति में इस पर विराम लगा दिया गया है। लेकिन यदि यह जीवंत होता, तो हमें काफी हद तक बच्चों के भविष्य की चिंता कम होती। यह सत्य है कि शिक्षक की मार के डर से बच्चे के साथ-साथ वाकई में अनुशासन का काफिला चला करता था। छड़ी की मार, जो बच्चों के ज्ञान में निखार लाने का काम करती थी, आँखों का डर, जो उन्हें अनुशासित रखने में खासा योगदान देता था, कानों का उमेठा जाना, जो उनके द्वारा की गई गलती का उन्हें तुरंत एहसास कराता था। घरों में बिताने वाले लगभग दो वर्षों के इस समय ने बच्चों को अनुशासन से पूर्णतः वंचित कर दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बच्चे माता-पिता की अपेक्षा शिक्षक से अधिक डरते हैं, और यही डर उनके लिए सुनहरा भविष्य गढ़ने में योगदान देता है। दिनभर परिवार जनों के साथ रहकर बच्चे महज परिवार में ही सीमित होकर रह गए हैं, नए लोगों के साथ सहज होने में कल की पीढ़ी को कई मुश्किलों से होकर गुजरना पड़ेगा, जिसका असर प्रत्यक्ष रूप से उनके भविष्य पर पड़ेगा। 


शिक्षक की डाँट को बच्चे भूल चुके हैं। आने वाला कितना समय इस दूरी को और अधिक बढ़ाने का काम करेगा, इस पर टिप्पणी कर पाना भी उचित नहीं है। मौजूदा समय में विकार अनेक हैं, इसलिए उन्हें ठीक करने की आवश्यकताएं भी अलग हैं। लेकिन कुछ बातें समान हैं, जो उन्हें इस तरह की समस्याओं से उबारने में मदद कर सकती हैं। इसलिए अब माता-पिता आगे होकर बच्चों को संगीत, नृत्य और अन्य कलात्मक चीजों में अपना समय लगाने के लिए प्रोत्साहित करें, उनके साथ आप भी इन गतिविधियों का हिस्सा बनें। शिक्षक उन्हें ग्रुप में पढ़ाई करने का कार्य दें। साथी ही उन्हें ग्रुप असाइनमेंट दें, ताकि वे दूसरों के साथ घुलना-मिलना शुरू कर सकें और अपनी बातचीत की कमी को दूर कर सकें। ऐसी तमाम गतिविधियां हैं, जिनके माध्यम से एक बार फिर उनकी कार्यप्रणाली को पटरी पर लाया जा सकता है। लगभग दो वर्षों की इस दूरी को पाटने के लिए हमें गंभीर होने की सख्त आवश्यकता है, अन्यथा हम एक ऐसी पीढ़ी के भविष्य के साथ खिलवाड़ को अंजाम दे देंगे, जो हमारे देश का भविष्य है।

Popular posts
कल की सेहत के लिए स्वस्थ होने के लिए उपयुक्त हैं
Image
"मैं अपने किरदार से गहराई से जुड़ा हूं क्योंकि उसी की ही तरह मैं भी कम शब्दों में बहुत कुछ कह देता हूं" ज़ी थिएटर के टेलीप्ले 'तदबीर' में वे एक पूर्व सेना अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं
Image
मिलिए एंडटीवी के 'हप्पू की उलटन पलटन' की नई दबंग दुल्हनिया 'राजेश' उर्फ ​​गीतांजलि मिश्रा से!
Image
एण्डटीवी की नई प्रस्तुति ‘अटल‘ अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन की अनकही कहानियों का होगा विवरण्
Image
by any Indian at the World Series of Poker (WSOP) Creates history at the prestigious WSOP and makes India proud of his achievement by bagging 16th rank at the main event
Image