कृषि, व्यापार और उद्योगों के लिए बढ़ रही हैं चुनौतियां* *-सतनाम सिंह माणक*

 


पिछले दिनों समाचार पत्रों में कुछ ऐसे समाचार प्रकाशित हुए थे, जो पंजाब के आर्थिक और सामाजिक सरोकारों के पक्ष से अहम हैं अर्थात् ये समाचार कृषि, व्यापार और उद्योगों को भी प्रभावित करने वाले हैं। गत 8 माह से चल रहे किसान आन्दोलन से भी इनका गहरा संबंध है। वर्तमान स्थिति में इन संबंधी चर्चा करना बेहद कारूरी है। 

* जहां तक वर्तमान किसान आन्दोलन का संबंध है, केन्द्र सरकार द्वारा ये संकेत दिये जा रहे हैं कि  वह तीन कृषि कानूनों को रद्द करने और फसलों के समर्थन मूल्य पर खरीद करने संबंधी आन्दोलन की मांगें मानने के अभी भी मूड में नहीं है। किसान नेताओं के साथ केन्द्र सरकार ने जो 11 चरणों में बातचीत की थी, उसमें किसानों को यह आश्वासन दिलाया गया था कि राजधानी दिल्ली के साथ लगते क्षेत्रों में प्रदूषण संबंधी जो कानून बनाया जा रहा है, उसमें से पराली या गेहूं के अवशेष जलाने के कारण उत्पन्न होने वाले प्रदूषण की मद को खारिज कर दिया जाएगा। किसान नेताओं को यह भी आश्वासन दिया गया था कि बिजली संशोधन विधेयक जो कि बिजली उत्पादन और वितरण के निजीकरण की ओर अग्रसर है, को भी केन्द्र सरकार आगे नहीं बढ़ाएगी। चाहे संसद का मॉनसून अधिवेशन पैगासस स्वाइवेयर के मुद्दे के कारण अच्छी तरह नहीं चल रहा और विपक्षी पार्टियों द्वारा इस मुद्दे को लेकर संसद के दोनों सदनों के कामकाज में रुकावटें डाली जा रही हैं, परन्तु इसके बावजूद सरकार ने इस अधिवेशन में पेश करने के लिए जो विधेयकों की सूची बनाई है, उसमें दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण की रोकथाम संबंधी विधेयक भी शामिल है और बिजली संबंधी संशोधन विधेयक भी शामिल है। इसके साथ ही केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर बार-बार अपना यह बयान भी दोहरा रहे हैं कि सरकार तीन कृषि कानून वापस नहीं लेगी। यदि किसान चाहते हैं तो इनकी मदों में संशोधन करवाने के लिए सरकार के साथ बातचीत कर सकते हैं। केन्द्र सरकार के इस व्यवहार से यह स्पष्ट नकार आ रहा है कि निकट भविष्य में वह कृषि कानून वापस लेने या समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी सहित किसानों की अन्य मांगें मानने के लिए तैयार नहीं है। दूसरी तरफ यदि किसान अभी भी अपनी मांगों पर दृढ़ रहते हैं तो यह बात भी स्पष्ट है कि किसान आन्दोलन लम्बा चलेगा और संभव है कि यह आन्दोलन सिर्फ किसान मांगों तक सीमित न रह कर भाजपा को सत्ता से बाहर करने के आन्दोलन में बदल जाये। आन्दोलन लम्बा चलने से यह भी स्पष्ट है कि किसानों को धरनों पर गर्मी, उमस और बारिशों का सामना करने के साथ-साथ जानी और आर्थिक तौर पर भी और बड़े नुक्सान सहन करने पड़ेंगे। अब तक 500 से अधिक किसानों की जान जा चुकी हैं और देश-विदेश से मिली आर्थिक सहायता के अतिरिक्त करोडों रुपये किसान चंदे के रूप में अपनी जेबों से भी खर्च चुके हैं। किसानों के कामकाज भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं, चाहे उनका आन्दोलन के लिए ऊंचा मनोबल अभी भी बना हुआ है। 

* दूसरी ओर केन्द्र सरकार और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी किसान आन्दोलन को असफल करने के लिए प्रत्येक समय कोई न कोई रणनीति बनाने में व्यस्त रहती है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसानों द्वारा भाजपा की राजनीतिक गतिविधियों का जो विरोध किया जा रहा है, वह इस विरोध को धीमा या कमकाोर करने के लिए भी निरन्तर यत्न कर रहे हैं। इस संदर्भ में ही हरियाणा में भाजपा ने तिरंगा यात्रा शुरू की है। इसमें बड़ी संख्या में ट्रैक्टरों को शामिल करके यह प्रभाव देने का यत्न किया जा रहा है कि बहुत-से किसान, किसान आन्दोलन के विरोध में भाजपा का समर्थन कर रहे हैं। यह एक तरह के किसान आन्दोलन के प्रभाव को कम करने और तिरंगे झंडे का प्रयोग करके अपनी राजनीतिक गतिविधियों को आरंभ करने का यत्न है। यदि हरियाणा में भाजपा की यह योजना सफल रहती है तो इसे भाजपा पंजाब और उत्तर प्रदेश में भी आजमा सकती है। यदि आन्दोलन कर रहे किसानों द्वारा भाजपा की इस तरह की तिरंगा यात्राओं का विरोध किया जाता है तो भाजपा द्वारा उसे देश विरोधी करार दिया जाएगा और ये भी आरोप लगाए जाएंगे कि वे तिरंगे का सम्मान नहीं करते। इस संबंध में संयुक्त किसान मोर्चे के नेतृत्व द्वारा तुरंत और सुझबूझ वाला फैसला लिया गया तथा उन्होंने आन्दोलन कारी किसानों से अपील की है कि वे भाजपा की तिरंगा यात्रा का विरोध न करें ताकि किसान आन्दोलन को देश विरोधी ठहराने की भाजपा की रणनीतिक साकिाश को असफल बनाया जा सके। 

* एक अन्य समाचार यह आया है कि लुधियाना के निकट किला रायपुर में अडानी ग्रुप ने जो लाजिस्टिक्स  पार्क बनाया था, उसे उन्होंने बंद करने का फैसला लिया है, क्योंकि गत 8 माह से किसान इसके सामने धरना लगा कर बैठे हैं और जालिस्टिक्स पार्क का पूरा कामकाज ठप्प हुआ पड़ा है। इस पार्क के माध्यम से पंजाब के विभिन्न उद्योग और व्यापारिक संस्थान अपना तैयार सामान बाहर भेजने और बाहर से कच्चा माल मंगवाने के लिए सेवाएं प्राप्त करते थे। पार्क की इन सेवाओं के माध्यम से ढुलाई का कार्य बेहद तेकाी से होता था और अडानी ग्रुप के पास देश-विदेश तक सामान पहुंचाने और सामान मंगवाने का अपना प्रबंध होने के कारण सामान सुरक्षित भी रहता था तथा ढुलाई भी उचित दरों पर हो जाती थी। यदि यह पार्क बंद होता है तो पंजाब के औद्योगिक और व्यापारिक संस्थानों को ढुलाई पर 33 प्रतिशत अधिक खर्च करना पड़ेगा और ढुलाई में समय भी अधिक लगेगा। राज्य सरकार को भी टैक्स के रूप में 700 करोड़ रुपये का वार्षिक नुक्सान होगा और 400 के लगभग यहां कार्य कर रहे कर्मचारी भी बेरोकागार हो जाएंगे। यदि अडानी ग्रुप पंजाब से वापस जाने का फैसला करता है तो वह मोगा के निकट बना अपना बड़ा साईलो भी बंद कर सकता है, जिसमें भारी मात्रा में एफ.सी.आई. द्वारा खरीदी गई गेहूं स्टोर की जाती है और फिर मांग के अनुसार देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में भेजी जाती है। इस साइलो के बाहर भी किसानों द्वारा गत कई महीनों से धरना दिया हुआ है। पंजाब के विभिन्न औद्योगिक और व्यापारिक संस्थानों का कहना है कि यदि अडानी जैसा बड़ा ग्रुप पंजाब से वापस चला जाता है तो राज्य के औद्योगीकरण की प्रक्रिया को ठेस पहुंचेगी और इस कारण और भी बड़े औद्योगिक संस्थान पंजाब में पूंजी निवेश करने से गुरेका करेंगे। इससे पंजाब को वित्तीय तौर पर भी बहुत बड़ा नुक्सान होगा और रोकागार के नये अवसर भी उत्पन्न नहीं किये जा सकेंगे। 

* समाचार पत्रों में चौथा अहम समाचार यह प्रकाशित हुआ है कि पंजाब में प्रत्येक वर्ष भूमिगत पानी का स्तर एक मीटर नीचे चला जाता है। कृषि, उद्योग और घरेलू इस्तेमाल के लिए प्रत्येक वर्ष 33.85 बिलियन क्यूबिक मीटर भूमिगत पानी निकाला जाता है, जबकि सभी स्रोतों से भूमि के नीचे सिर्फ 22.8 बिलियन पानी ही जाता है। राज्य के कुल 150  ब्लाकों में से 117 ब्लाक पानी की कमी वाले घोषित किये जा चुके हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार पंजाब प्रत्येक वर्ष धरती के नीचे जाने वाले समूचे पानी से 59 फीसदी अधिक पानी बाहर निकालता है। यदि ऐसा सिलसिला बरकरार रहता है तो आने वाले 10-15 वर्षों में कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए पानी उपलब्ध नहीं होगा और पंजाब को पानी के पक्ष से एक बड़े संकट का समाना करना पड़ेगा। 

उपरोक्त चार समाचार चाहे भिन्न-भिन्न हैं परन्तु इनका पंजाब के आर्थिक और सामाजिक सरोकारों से गहरा संबंध है। इन समाचारों के संदर्भ में पंजाब के किसानों, व्यापारियों, उद्योगपतियों और यहां तक कि पंजाब सरकार को भी अपनी प्राथमिकताओं और अमलों संबंधी खुले मन से विचार करने की आवश्यकता है ताकि पंजाब को भविष्य में बड़े नुकसान से बचाया जा सके।

सबसे पहले किसान आन्दोलन से जुड़े मुद्दों पर बात करते हैं। नि:सन्देह संयुक्त किसान मोर्चे के नेतृत्व में इकट्ठा हुए 32-33 किसान संगठनों ने केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गये तीन कृषि कानूनों के विरोध में अब तक बड़ी सफलता से आन्दोलन चलाया है एवं इस दौरान अनुशासन और एकजुटता बना कर रखी है। इसमें 500 से अधिक किसानों ने अपना जीवन न्यौछावर किया है तथा बड़े स्तर पर आर्थिक नुकसान भी उठाया है। दिल्ली की सीमाओं के साथ-साथ राज्य में 130-135 स्थानों पर धरने भी सफलतापूर्वक चलाए हैं परन्तु जिस तरह के केन्द्र सरकार के संकेत दिखाई दे रहे हैं, उनसे लगता है कि यह आन्दोलन और भी लम्बा चलेगा। इसलिए संयुक्त किसान मोर्चे के नेतृत्व को इस आन्दोलन के सकारात्मक और नकारात्मक सभी प्रभावों का खुले दिल से विश्लेषण करना चाहिए ताकि इस आन्दोलन को और भी अधिक समूचे ढंग से चलाया जा सके। नि:सन्देह केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गये तीन कृषि कानून किसान एवं कृषि विरोधी हैं और इनका उद्देश्य कृषि एवं कृषि व्यापार कार्पोरेटरों के हवाले करना है। खाद्य सुरक्षा एवं आम उपभोक्ताओं के हितों के लिए ये कानून भी सही नहीं हैं। इनके खिलाफ किसानों द्वारा आन्दोलन करना किसी भी तरह गलत नहीं है, परन्तु ऐसी स्थितियों में किसान आन्दोलन को नई रूप-रेखा देने की बेहद आवश्यकता है, जिससे केन्द्र सरकार पर दबाव भी बना रहे एवं पंजाब के औद्योगिक एवं व्यापारिक हितों को हो रहे भारी नुकसान का भी कोई समाधान निकाला जा सके। यदि बड़े कारोबारी संस्थान पंजाब से बाहर चले जाते हैं और नये पूंजी निवेश हेतु और संस्थान पंजाब में नहीं आते तो आवश्यक तौर पर इससे पंजाब का व्यापार तथा उद्योग प्रभावित होगा और समूचे रूप से राज्य में रोकागार के अवसर कम होंगे। पहले ही पंजाब में रोकागार की सम्भावनाएं न होने के कारण व्यापक स्तर पर युवा +2 करने के बाद ही जायका-नाकाायका ढंग से विदेशों को जाने के लिए विवश हो रहे हैं। इसके साथ ही हमारा पंजाबी समाज बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। बड़ी कारोबारी कम्पनियों ने राज्य में जो लजिस्ट्रिक्स पार्कों, साइलॉका एवं माल्का के रूप में पूंजी निवेश किया हुआ है, उनके कामकाका ठप्प होने के कारण उनके कर्मचारी भी बेरोकागार हो रहे हैं तथा इन कम्पनियों को ऋण लेकर पंजाब के जिन लोगों ने इमारतें बना कर दी हैं, वह भी गहरे संकट में घिरते दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि इन कम्पनियों की ओर से उन्हें किराया नहीं मिल रहा तथा वे आगे बैंकों के ऋणों की किस्तें भरने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। हमारा परामर्श है कि ऐसी कम्पनियों से किसान आन्दोलन के नेतृत्व द्वारा कोई संवाद रचाया जाना चाहिए। यदि वे फार्म बना कर कृषि करें या कांट्रैक्ट कृषि करने के अमल से दूर रहने की गारंटी देती हैं एवं कृषि उत्पादन समर्थन मूल्य पर खरीदने की किसानों की मांग का सैद्धांतिक रूप से समर्थन करती हैं तो ऐसी कम्पनियों के विरुद्ध केन्द्रित आन्दोलन संबंधी पुन: विचार किया जाना चाहिए। नि:सन्देह कृषि देश की अनाज सुरक्षा एवं पंजाब के हितों के लिए बड़ा महत्त्व रखती है परन्तु हम सभी को यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि किसी भी क्षेत्र की आर्थिकता कृषि से शुरू होकर व्यापार एवं औद्योगीकरण तक आगे विकसित होती है। इससे ही आर्थिकता का चक्कर पूरा होता है।  कोई भी क्षेत्र या समाज स्वयं को सिर्फ कृषि तक सीमित नहीं रख सकता तथा न ही ऐसा करके रोकागार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है। इसलिए राज्य में किसानों एवं कृषि के हित भी सुरक्षित रहने चाहिएं तथा साथ ही इसके व्यापार एवं औद्योगिक हित भी सुरक्षित रहने चाहिएं।

जहां तक पंजाब के भूमिगत जल स्तर में लगातार आ रही गिरावट का संबंध है, इस पर भी संयुक्त किसान मोर्चे का नेतृत्व, उद्योगपतियों एवं राज्य में और ढंग-तरीकों से पानी का उपयोग कर रहे संस्थानों एवं यहां तक कि अपने-अपने घरों में पानी का उपयोग कर रहे आम लोगों को भी गम्भीरता से विचार करने की कारूरत है। भविष्य में हमें प्रत्येक क्षेत्र में पानी  के समूचे उपयोग करने के ढंग-तरीके ढूंढने पड़ेंगे। वर्षा के पानी की एक-एक बूंद सम्भालने तथा उसे धरती में पहुंचाने के लिए आधुनिक ढंग एवं पारम्परिक ढंग-तरीके दोनों का ही प्रयोग करना पड़ेगा। इसके साथ ही धान जैसी फसलों का विकल्प ढूंढना बेहद आवश्यक है। यदि भविष्य में भी इसी प्रकार धान की कृषि की जाती है तो इस प्रकार जानकारी मिल रही है कि राज्यों को भयानक पानी के संकट का सामना करना पड़ेगा। पानी के ऐसे संकट के कारण न कृषि हो सकेगी, न उद्योग एवं अन्य कारोबार चल सकेंगे तथा न ही प्रदेश की धरती पर मानवीय जीवन बरकरार रह सकेगा। एक तरह से पंजाब पूरी तरह तबाह हो जाएगा। ऐसी सम्भावनाओं  के संबंध में सोचने से ही मन में गहरी चिंता पैदा हो जाती है। इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि कृषि के साथ-साथ उद्योगों, अन्य कारोबारी संस्थानों एवं यहां तक कि घरों में पानी के हो रहे उपयोग संबंधी गम्भीरता से विचार किया जाए एवं पानी के  सख्ती से समुचित उपयोग के लिए नियम और कानून बनाए जाएं तथा राज्य के सभी वर्गों के लोगों द्वारा इन पर अमल किया जाए। इस तरह के बहु-पक्षीय प्रयासों एवं सहयोग से ही हम अपने प्यारे पंजाब को अपनी भावी पीढिय़ों के लिए खुशहाल रख सकते हैं।

अंत में हम यह बात पुन: दोहराना चाहते हैं कि वर्तमान किसान आन्दोलन को प्राप्त जन-समर्थन को बरकरार रखने एवं इसमें और वृद्धि करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चे के नेतृत्व को उपरोक्त वास्तविकताओं की रोशनी में गहन विचार करके उचित फैसले लेने चाहिएं ताकि यह आन्दोलन सरकार पर अपना दबाव तो बनाए रखे परन्तु इस कारण जो पंजाब के व्यापार एवं उद्योगों को नुकसान हो रहा है, उसे अधिक से अधिक सीमा तक कम किया जा सके तथा प्रदेश में पूंजी निवेश की सम्भावनाएं भी बनी रहें।

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